मंगलवार, 8 अप्रैल 2008

संगीत से सेहत का राग मिलाने की अनूठी पहल


संस्कारधानी कहे जाने वाले बिलासपुर से हाल ही में संगीत और सेहत की जुगलबंदी शुरू की गई है. यह पहल पुलिस महानिरीक्षक राजीव श्रीवास्तव ने की. अब यहां अनेकसंगीत विशेषज्ञों और संगीत से अनुराग रखने वालों की एक टीम तैयार हो गई है, जो पूरे छत्तीसगढ़ में काम करेगी. समिति के गठन के ही दिन विश्व के शीर्षस्थ गिटार वादकों में से एक येल यूनिवर्सिटी से संगीत के स्नातक जेफरी क्रिंगर की अनूठी प्रस्तुति ने श्रोताओं को रसविभोर कर दिया.
संगीत अथवा ध्वनि के माध्यम से उपचार की पध्दति नई नहीं है. संगीत की शक्ति से हर भारतीय परिचित है. सुर सम्राट तानसेन ने जब सम्राट अकबर के दरबार में दीपक राग सुनाया तो संगीत के संप्रेषण से दीयों से लौ जल उठे. उनके राग मेघ मल्हार से वर्षा हो जाती थी. बाद में तानसेन अस्वस्थ हुए, तब भी उनकी बहनों ने राग मल्हार सुनाकर ही उन्हें ठीक किया. आधुनिक शोधों के बाद अब यह मान्यता बन चुकी है कि म्यूजिक थेरैपी आत्म विकास और आत्मावलोकन का उत्कृष्ट साधन है. यह न केवल शारीरिक विकारों को नियंत्रित करता है बल्कि व्यक्ति की सामाजिक गतिविधियों को सही दिशा दे सकता है. संगीत का प्रयोग कर किसी भी व्यक्ति की कार्यदक्षता और क्षमता बढ़ाई जा सकती है
एलोपैथी चिकित्सक डा. अनिल पाटिल पिछले 15 सालों से मुम्बई के समीप दादर में म्यजिक थेरैपी से मरीजों का उपचार कर रहे हैं. वे भारत के पहले म्यूजिक थेरैपिस्ट होने का दावा भी करते हैं. रोगियों की जरूरत के अनुसार वे खुद संगीत संयोजन करते हैं, गीतों की रचना करते हैं और अलग-अलग रोगियों की प्रवृति और आवश्यकता के अनुसार उन पर प्रयोग करते हैं. डा. पाटिल का कहना है कि अम्लता, मधुमेह, रक्तचाप और ह्रदय के मरीजों में म्यूजिक थेरैपी से बेहतर परिणाम सामने आए हैं. बच्चों के बेहतर विकास के लिए यह काफी कारगर है. यहां तक कि प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ा भी म्यूजिक थेरैपी से कम की जा सकती है. डा. पाटिल ने उपचार की इस पध्दति की सफलता से उत्साहित होकर मुम्बई के समीप ही लोनावाला में एक आश्रम भी बना लिया है, जहां मरीजों का बेहतर सुविधाओं के साथ इलाज किया जाता है.
पर यह संगीत उपचार के लिए किस तरह काम करता है?
बिलासपुर में गठित छत्तीसगढ़ म्यूजिक थेरैपी एसोसिएशन के अध्यक्ष मनीष दत्त का कहना है कि पृथ्वी समेत सृष्टि की प्रत्येक संरचना में किसी न किसी प्रकार का कम्पन है. वस्तुओं के भार, प्रकृति व गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव से कम्पन की यह गति भिन्न हो सकती है. मष्तिष्क, नेत्र, ह्रदय, नाड़ी ही नहीं चलते बल्कि हमारे शरीर की संरचना कुछ ऐसी है कि इसके प्रत्येक भाग में अलग-अलग आवृत्ति और तीव्रता के कम्पन होते हैं. निरोगी काया में इन कम्पनों की गति कम या अधिक हो जाती है, म्यूजिक थेरैपी के जरिए रोगियों के इन कम्पनों को नियंत्रित किया जाता है तथा निश्चित गति दे दी जाती है. थेरैपिस्ट, रोगियों के लिए अनुकूल संगीत की रचना करते हैं अथवा रचे गए उपयुक्त संगीत की खुराक उन्हें ठीक दवाओं की तरह ही देते हैं. संगीत का कानों से होकर मष्तिष्क, नेत्र और ह्रदय पर पड़ने वाले प्रभाव हम देखते और महसूस करते हैं. इसी तरह शरीर के बाकी अंगों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है, वह भले ही हमें प्रत्यक्ष तौर पर महसूस न होता हो. व्याधि से मुक्त करने के लिए इसी सिध्दांत से काम किया जाता है.
महर्षि महेश योगी ने अपने हालैंड स्थित विश्वविद्यालय तथा उसकी दिल्ली शाखा में म्यूजिक थेरेपी पर शोध कराया और यहां प्रयोग करके दिखाया कि एक विशेष प्रकार का संगीत सुनने के दौरान गायें ज्यादा दूध देने लगती हैं. जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर (1889-1945), 6 माह से सो नहीं पा रहे थे, उन्हें नींद में लाने के लिए तमाम दवाओं का इस्तेमाल किया गया, लाभ नहीं हुआ. तब उस वक्त के प्रख्यात भारतीय संगीतज्ञ ओंकार नाथ ठाकुर की मदद ली गई. उन्होंने अपने संगीत का जादू इस तरह चलाया कि हिटलर को नींद आ गई.
हालांकि श्री दत्त का मानना है कि म्यूजिक थेरैपी इतनी सरल उपचार पध्दति नहीं है. चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले दूसरे प्रवीण लोगों की तरह ही इसके चिकित्सकों को पर्याप्त समर्पण भाव व गंभीरता से काम करने से ही रोगियों के उपचार में सफलता मिल सकती है. एक ही तरह का संगीत दो समान विकार वाले रोगियों के लिए कारगर हो यह भी जरूरी नहीं है. प्रत्येक रोगी के लिए उसके शरीर, मष्तिष्क और उसके मनोभावों के अनुसार ही संगीत का चयन करना आवश्यक है.
बहरहाल, अंग्रेजी दवाओं व खर्चीले प्रचलित उपचार पध्दतियों के बीच म्यूजिक थेरैपी रोगियों के लिए आशा की किरण है, जिसने छत्तीसगढ़ में भी दस्तक दे दी है.छत्तीसगढ़ म्यूजिक थेरैपी एसोसिएशन के मुख्य संगीत प्रशिक्षक उस्ताद आरिफ तनवीर का कहना है कि आधुनिक भारत के इतिहास में पांचवे दशक में प्रख्यात संगीत साधक कटनी के घनश्याम दास की किताब संगीत विज्ञान म्यूजिक थेरैपी पर ही केन्द्रित है. हालांकि संगीत के कोर्स में विश्वविद्यालयों ने इसे नहीं लिया है पर अनेक संगीत शिक्षण संस्थानों में यह किताब उपलब्ध है.
बिलासपुर में बनाई गई छत्तीसगढ़ स्तरीय समिति के संस्थापक पुलिस महानिरीक्षक श्री श्रीवास्तव हैं. जिन्हें खेल, संगीत के अलावा अनेक सामाजिक गतिविधियों में हमेशा आगे देखा जाता है. इसके अध्यक्ष संगीत के क्षेत्र में पिछले 50 सालों से सक्रिय मनीष दत्त हैं. मुख्य संगीत प्रशिक्षक आरिफ तनवीर हैं. समिति में राम प्रताप सिंह विमल, डा. योगेश जैन, डा. अलका रहालकर, विवेक जोगलेकर आदि भी शामिल किये गए हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों में खासी महारत रखते हैं. छत्तीसगढ़ के हर जिले में इसकी इकाईयां गठित करने की योजना बनाई गई है. एसोसियेशन ने संगीत चिकित्सा के माध्यम से आम लोगों के अलावा पुलिस और सुरक्षा के काम में लगे जवानों का भी उपचार करने की योजना बनाई है.

2 टिप्‍पणियां:

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

भाषा,शैली व शिल्प
सभी दृष्टि से बेजोड़ .
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बधाई
डा.चन्द्रकुमार जैन

बेनामी ने कहा…

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में
पंचम का प्रयोग भी
किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..

हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल
में चिड़ियों कि चहचाहट
से मिलती है...
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