गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

नक्सलियों के नाम पर निर्दोषों का संहार


बीते 8 जनवरी को छत्तीसगढ़ के अख़बारों व इलेक्ट्रानिक मीडिया में बस्तर पुलिस की जबरदस्त कामयाबी की एक ख़बर पहुंची. वह ये कि राजधानी रायपुर से तकरीबन 450 किलोमीटर दूर बस्तर के दंतेवाड़ा जिले के सिंगावरम गांव में पुलिस मुठभेड़ में 17 नक्सली मारे गए हैं. इनमें 6 महिलाएं भी हैं. उस दिन क्षेत्रीय समाचार चैनल इसी ख़बर से पट गए, जाहिर है अगले दिन छत्तीसगढ़ के सभी अख़बारों में यह प्रमुखता से छपा. पुलिस ने बताया कि सर्चिग पर निकले एसपीओ व जिला पुलिस बल के जवानों पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया. पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की, जिसमें ये नक्सली ढेर हो गए. पुलिस के अनुसार वह मारे गए नक्सलियों का शव उठाकर इसलिए नहीं ला पाई क्योंकि मुठभेड़ के बाद अंधेरा हो चुका था और वहां रात भर ठहरना खतरे से खाली नहीं था. सबको लगा कि बस्तर में नक्सलवाद के खात्मे का संकल्प लेने वाली भाजपा, जिसे बस्तर की 12 में से 11 विधानसभा सीटों पर हाल के चुनावों में जीत मिली है, ने दुबारा सत्ता में पहुंचने के बाद पुलिस का मनोबल ऊंचा उठाया है और प्रधानमंत्री के शब्दों में 'देश की सबसे बड़ी आंतरिक समस्या' के खात्मे के लिए दुगने जोश से काम कर रही है. उस बस्तर के लिए तो यह सफलता खासी अहमियत की है, जहां कश्मीर व पूर्वोत्तर राज्यों से भी ज्यादा लोग उग्रवाद के कारण मारे जाते हैं. मगर अफसोस! यह सब सच नहीं था. धुंधलका जैसे ही छटा सिंगावरम मामले ने सरकार व पुलिस की कलई खोल दी और यह संवेदनहीनता और क्रूरता का एक बड़ा नमूना बनकर सामने आया.
आंध्रप्रदेश की सीमा से लगे इस दुर्गम व अभावग्रस्त गांव में दो दिन बाद जब वहां पत्रकारों का दल इस घटना की रिपोर्टिंग के लिए पहुंचा तो मुठभेड़ की हकीकत सामने आई. सिंगावरम के ज्यादातर ग्रामीण भय से गांव छोड़कर भाग चुके थे. कुछ रक्तरंजित मैदान में इधर उधर बिखरे शवों के सामने बिलख रहे थे. ग्रामीणों ने बताया कि पुलिस ने सिंगावरम व पास के 2 और गांवों के लोगों को सामान उठाने में मदद करने के लिए बुलाया. नक्सलियों के बारे में पूछताछ करने के बाद जवानों ने उन्हें एक कतार पर खड़ा किया और अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं. लोग अपनी जान बचाकर भागे. लेकिन 17 उनके निशाने से नहीं बच सके. (कुछ ख़बरों में मृतकों की संख्या 19 बताई गई है) इसके बाद पुलिस ने इस जनसंहार को जायज ठहराने के लिए जरूरी इंतजाम किया. कुछ ग्रामीणों को नक्सलियों की वर्दी पहनाई गई. घटनास्थल से 5 भरमार बंदूकों की बरामदगी दिखाई गई. आंध्र के अख़बारों में रिपोर्टिंग के बाद बस्तर से भी पत्रकारों का दल पहुंचा, उन्हें भी नक्सली मुठभेड़ की परिस्थितियां नहीं दिखीं. राज्य के विपक्षी दल कांग्रेस के कान भी खड़े हुए. बस्तर के एकमात्र कांग्रेस विधायक कवासी लखमा ने घटनास्थल का दौरा किया. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने श्री लखमा, मीडिया और अपने कुछ प्रतिनिधियों से रिपोर्ट मंगाने के बाद इस मुठभेड़ को लेकर सवाल उठाए. उन्होंने इसे जनसंहार बताया और मामले की जांच सीबीआई से या विधायकों की समिति से कराने की मांग की. श्री लखमा ने तो यहां तक कहा कि मारे गए लोगों में उनके रिश्तेदार भी शामिल हैं, जिनका नक्सली गतिविधियों से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं है. बस्तर के पूर्व विधायक आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष कुंजाम व आदिवासी चेतना आश्रम दंतेवाड़ा के प्रतिनिधि घटनास्थल गए. लौटने के बाद कुंजाम ने कहा कि क्या 5 भरमार बंदूकों से 17 नक्सली फोर्स से मुकाबला करने के लिए आएंगे, मारे गए लोगों को ऊपर से नक्सलियों के कपड़े पहनाए गये हैं, कई नाबालिग हैं.
विधानसभा सत्र शुरू होने के बाद 3 फरवरी को पहले सिंगावरम का मामला ही उठा. विपक्ष ने हंगामा किया और आसंदी तक जा पहुंचे. 32 विधायक सदन से निलम्बित कर दिए गए. लेकिन सरकार सीबीआई या विधायकों से मामले की जांच के लिए राजी नहीं हुई. दंतेवाड़ा जिलाधीश ने एक एसडीएम को जांच अधिकारी बनाया . वे क्या जांच करेंगे और क्या रिपोर्ट देंगे, लगभग तय है. प्रतिपक्ष के नेता रविन्द्र चौबे कहते हैं कि यह अजीब मामला है कि 17 नक्सलियों को मारने वाले जिन अधिकारियों व जवानों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए उनका नाम भी उजागर करने से सरकार डर रही है और जब यह सरकार की उपलब्धि ही है तो किसी भी स्तर की जांच से घबराने की क्या जरूरत? इस कथित मुठभेड़ में 3 एसपीओ घायल हुए, ऐसा पुलिस का कहना है पर वे सामने नहीं लाए गए.
इसी दिन बस्तर में आदिवासियों के बीच सक्रिय कुछ संगठनों की मदद से मृतकों के परिजन 500 किलोमीटर दूर हाईकोर्ट बिलासपुर पहुंच गए. उन्होंने याचिका लगाई जिसमें यह भी बताया गया कि हत्या करने के पहले महिलाओं से दुष्कर्म भी किया गया. परिजनों के लिए 25-25 लाख रूपए मुआवजे तथा घटना में शामिल पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई. हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है. हाईकोर्ट के निर्देश पर आदिवासियों के दफनाए गए 8 शवों को निकालकर पोस्टमार्टम किया गया. इसकी रिपोर्ट न्यायालय में सौंपी जाएगी. हाईकोर्ट ने राज्य के गृह सचिव, दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक तथा घटना में शामिल 16 विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) को जवाब देने के लिए कहा है. सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. अब 25 फरवरी को इस मामले में सरकार को विस्तार से हलफनामा देने का निर्देश दिया गया है. 17 फरवरी को विधानसभा में एक बार फिर यह मामला उठा. उस समय विपक्ष ने फिर सवाल उठाया. सिंगावरम में मारे गए कथित नक्सलियों के नाम-पते तो सरकार की तरफ से बता दिए गये लेकिन यह नहीं बताया गया कि उनके ख़िलाफ क्या मामले दर्ज थे. जब विपक्ष ने पूछा कि पुलिस कैसे तय करती है कि कोई नक्सली है या नहीं. तब संसदीय सचिव विजय बघेल ने कहा कि जो भी व्यक्ति बस्तर में हथियार लेकर पुलिस की तरफ आएगा, वे उसे नक्सली मानते हैं.
नक्सलियों ने अब तक दर्जनों बार विस्फोट और कई सामूहिक हत्याएं की हैं. नक्सलियों की वजह से बस्तर के आदिवासी सड़क,पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. हर साल दर्जनों जवान नक्सली हमलों में मारे जा रहे हैं. उन्होंने 1 लाख 35 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले बस्तर के आम-आदमी का जनजीवन खतरे में डाल रखा है. विषम परिस्थितियों में नक्सलियों से जूझ रहे जवानों के साहस का भी कोई जवाब नहीं. नक्सलियों को बस्तर के आदिवासियों की बेहतरी से सरोकार नहीं. वे हर कीमत पर इस इलाके में अपना साम्राज्य बनाए रखना चाहते हैं. जब रमन सरकार कहती है कि वे इस कार्यकाल में बस्तर से नक्सलियों का सफाया करके रहेंगे, तब पुलिस नक्सलियों की क्रूरता का जवाब यदि उन्हीं की भाषा में देना चाहती हो तो अचरज क्यों हो. लेकिन सिंगावरम जनसंहार से लगता है कि सरकार के लक्ष्य को पूरा करने के लिए पुलिस अधिकारी नक्सली मौंतों का आंकड़ा बढ़ाने में लगे हैं और फर्जी मुठभेड़ों में बेकसूर ग्रामीणों को निशाना बनाया जा रहा है. शायद सरकार यह भी समझती है कि ग्रामीणों को मारने से नक्सलियों में प्रतिक्रिया होगी और वे दहशत में आएंगे. सच कहा जाए तो सिंगावरम घटना सवाल यह करता है कि प्रचुर संसाधनों से भरे और दुनिया भर के उद्यमियों की निगाह में गड़े बस्तर से सरकार नक्सलियों का सफाया करना चाहती है या आदिवासियों का?

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अफसोसजनक.

उमाशंकर मिश्र ने कहा…

tathyaparak jaankari jutane ke liye abhaar

दीपक ने कहा…

आदिवासी या तो गोलीया छाती पर खा रहे है या तो पीठ पर !! ऐसी बर्बरता को धिक्कारा ना जाये तो और क्या ?