छत्तीसगढ़ इन दिनों अपने दशकों पुराने एक गीत को नये कलेवर में पाकर झूम रहा है. हाल में प्रदर्शित दिल्ली-6 का गेंदा फूल हाट-बाजारों से लेकर ड्राइंग रूम में गूंज रहा है. देश-दुनिया के लोगों को राज्य के समृध्द लोक संगीत की मिठास, शब्दों में सहजता, सरलता व अपनापे का नया अनुभव लेना हो तो यह गीत उसकी एक झलक दिखाएगा. गांवों के मेले-ठेले व आकाशवाणी केन्द्रों में कुछ बरस तक ऐसे न जाने कितने मधुर गीत बजते रहते थे, लेकिन राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के हर संसाधन को बाजारू बनाने जो कोशिश की गई, उनमें कला व संगीत से जुड़ा क्षेत्र भी शामिल हो गया. पिछले कुछ सालों से छत्तीसगढ़ का संगीत बाज़ार फिल्मी गीतों के बेसुरे नकल, फूहड़ तुकबंदी और अश्लील भाव भंगिमाओं से भरे गीतों से पट गया है. रोज थोक के भाव में वीडियो सीडी निकल रहे हैं, जिनमें कल्पनाशीलता गुम है, रस-माधुर्य खो चुका है और टीन कनस्तर पीट-पीटकर बताया यह जा रहा है कि यही छत्तीसगढ़ की पहचान है. इनको पोसने से आकाशवाणी केन्द्र तो अभी तक बचे हुए हैं पर दूरदर्शन अपने क्षेत्रीय प्रसारण में ऐसे गीतों को जगह देने लगा है. ऐसे में ए आर रहमान और प्रसून जोशी ने सास गारी देथे, ननंद मुंह लेथे गाने पर प्रयोग कर नई पीढ़ी को फिर से बताया है कि छत्तीसगढ़ी लोक-संगीत में कालजयी विशेषताएं हैं.
फिल्म रिलीज होने के कुछ दिन पहले से लगातार इलेक्ट्रानिक मीडिया व प्रमुख अख़बारों में यह ख़बर चली कि गीत को सुनकर तो लोग आल्हादित हैं पर गीतकार व संगीतकार ने छत्तीसगढ़ का कहीं पर जिक्र नहीं किया. लोगों की बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाएं ली गई और उन्हें कोसने की मुहिम चलाई गई. लोगों से उगलवाया गया कि यह भोले-भाले छत्तीसगढ़िया लोगों के साथ धोखाधड़ी है, अन्याय है. असली गीतकार व गायकों को इसका श्रेय नहीं दिया. गीत से छेड़छाड़ की गई, गोंदा फूल को गेंदा फूल कर दिया गया.मामले ने यहां तक तूल पकड़ा कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी मुद्दा उठ गया.ख़बरें तलाशने और जल्द से जल्द छाप देने की होड़ ने इसे पहले पन्ने का पहला समाचार तो बना दिया लेकिन अधूरा. उन व्यक्तियों का पक्ष समाचार से गायब है, जो आरोपी हैं. जब कोई घटना पहले पन्ने की पहली ख़बर बने तो पत्रकारिता की जिम्मेदारी कहती है कि उस व्यक्ति का पक्ष भी जाना जाए, जिसे कटघरे पर खड़ा किया गया है. लेकिन इन समाचारों में इसकी जरूरत महसूस नहीं की गई.
अब जरा फिल्म दिल्ली-6 के गीतकार प्रसून जोशी का कहना सुन लिया जाए. संयोग से इंटरनेट पर उनकी ई-मेल आईडी मिल गई. जल्दी ही जवाब आ गया. मोटे तौर पर उन्होंने जो कहा, वे इस तरह से हैं-
एक- पारम्परिक लोक गीतों पर किसी को अनुचित श्रेय लेने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. गेंदा फूल गीत पारम्परिक है और इसका स्पष्ट उल्लेख सीडी कवर पर किया गया है.
दो-गीतकार के रूप में मुझे अपना नाम डालने में कोई गलत बात नहीं दिखती क्योंकि अखिल भारतीय स्तर पर बोधगम्य बनाने के लिए मूल गीत में कई फेरबदल करने पड़े.
तीन- गीत में रायपुर का जिक्र आया है, छत्तीसगढ़ को गीत से छिपाने की कोई मंशा नहीं रही है.
चार- संगीतकार के रूप में रजत ढोलकिया और ए आर रहमान ने इसमें मौलिक जादुई असर डाले हैं, ताकि देश के हर कोने के संगीत प्रेमियों को सहज ही भाए.
प्रसून जोशी बताते हैं कि पहली बार उन्होंने रघुबीर यादव से यह गीत सुना. उन्हें यह गीत फिल्म दिल्ली-6 के लिए उपयुक्त लगा और उन्होंने इसे ले लिया. श्री जोशी का यह भी मानना है कि छत्तीसगढ़ हो, पंजाब या फिर कुमाऊं, जहां से वे खुद आते हैं, में लोकगीतों का ख़जाना भरा पड़ा है. व्यावसायिक सिनेमा इसकी मिठास को ही ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाकर इसे समृध्द करने का ही काम करते हैं.समय और जरूरत के अनुसार कुछ नई चमक लाते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी इसे सहेजने काम चलना चाहिए.
श्री जोशी से असहमति की कोई वजह नहीं दिखती. हम, पिंजरे वाली मैना से लेकर कजरारे-कजरारे तक कितने ही लोक गीतों पर थिरकते आ रहे हैं, क्या किसी ने कापीराइट का मामला बनाया? पंजाब, असम, राजस्थान, गुजरात, हिमालय की तराई के पारम्परिक गीतों का हर दूसरी फिल्म में प्रयोग होता देख रहे हैं. इन सबके बीच छत्तीसगढ़ कहां है? क्या छत्तीसगढ़ में लोक विविधताओं, विशेषताओं का अकाल है? हरगिज़ नहीं. गेंदा फूल जैसे सैकड़ों गीत हैं, जिन पर दुनिया भर के संगीत प्रेमी थिरक सकते हैं. आकाशवाणी रायपुर के पास बेशुमार गीत हैं. तपत गुरू भई तपत गुरू, मोर संग चलव रे, झिमिर-झिमिर बरसे पानी...ददरिया, करमा, सुआ, पंडवानी, बिहाव गीत, कितनी ही विधाओं के गीत. न तो आकाशवाणी उन्हें खुद नये प्रयोगों के साथ नई पीढ़ी के लिए सामने ला रहा है न ही किसी जिम्मेदार हाथों में सौंप रहा है. छत्तीसगढ़ के लोक गीतों पर छत्तीसगढ़ियों ने ही प्रयोग किए हैं और वे श्रव्य बन सके हैं. इसी गेंदा फूल गीत को अलग-अलग बोलों में तथा बदले हुए धुन में सालों से गाया जा रहा है. लोक गीतों में खूबी यही है कि उस माटी में पलने-बढ़ने वाला हर कोई उसमें नये अंतरे और आयाम जोड़ सकता है.पर अब शायद हम अपनी तिजोरी पर ताला लगाकर चाबी समन्दर में फेंक चुके हैं. छत्तीसगढ़ी गीतों से प्रेम करने वाले लोग आज उन गीतों को सुनने के लिए तरस रहे हैं. बाजार में टिक गए हैं वे लोग जिनके गीतों को सुनने में शर्म आती है. छत्तीसगढ़ के लोग इन गीतों को पसंद नहीं करते. ये सीडी बाजार से लोग कुछ नया पाने की उम्मीद में खरीदते हैं, पर निराशा हाथ लगती है. ऐसे सीडी दुकानों में भरे पड़े हैं, जिन्हें कोई खरीदार नहीं मिल रहा. इसीलिए जब छत्तीसगढ़ का गोंदा फूल नये कलेवर में गेंदा फूल बनकर सामने आया है तो उसे हाथों हाथ उठाया जा रहा है. उम्मीद है, छत्तीसगढ़ लोक संगीत की खूबियों को अब ज्यादा लोग पहचानेंगे और गेंदा फूल की ही तरह अनेक प्रयोगों का सिलसिला शुरू होगा. संगीत के व्यवसाय से जुड़े स्थानीय लोग भी संभवतः इसे प्रेरणा के रूप में लें और कुछ सकारात्मक करें. प्रसून, रहमान, जय हो!
रविवार, 22 फ़रवरी 2009
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11 टिप्पणियां:
sahi kaha hai aapne.
यह सही किया आपने कि उनका पक्ष भी सामने रखा।
उनके विचार जानकर अच्छा लगा।
Lok giton ko lok mukh me jivit rakhne ke liye agar use thodi taazgi de di jaye to bura kya hai ?
राजेश जी जबसे यह गाना सुना है पता नही कितनी बार सुन चुका हूँ। और अभी भी सुनकर हटा हूँ। सच लोक गीतों की बात ही निराली होती है। वैसे एक चीज आपसे पूछनी थी कि ससुराल गेंदा फूल या गोंदा फूल क्यों कहा है। जरा थोडा सा ये बता दीजिए।
गेंदा या गोंदा फूल के बारे में जानने की दिलचस्पी तो मेरी भी है। क्या छत्तीसगढ़ के लोकगीतों इंटरनेट पर सुनने का भी क्या कोई साधन है।
गेंदा या गोंदा फूल के बारे में जानने की दिलचस्पी तो मेरी भी है। क्या छत्तीसगढ़ के लोकगीतों इंटरनेट पर सुनने का भी क्या कोई साधन है।
Keep it up !
जब लोक के नाम पर कोक बजाया जाता है और झोलटूराम गली-मुहल्ले की नींद खराब करता है, तब कोई अभियान नहीं चलता. भोजपुरी के अश्लील गानों से कहीं आगे जाकर लोक के नाम पर अश्लीलता का कुतुबमीनार खड़ा करने पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया जाता.
प्रसंगवश एक जानकारी. गांव के नाम ससुराल मोर नाम दामाद में भी हबीब तनवीर ने इस गीत को इस्तेमाल किया है, कुछ दूसरे गीतों के साथ.
aapke lekh ke liye dhanyawad,kuch log is gane ka matlab janna chahte hain
'Genda phool' ko is folk song mein sasural se compare kiya gaya hai,
jaise genda phool dikhne mein bahut sundar hota hai lekin usme khusboo nahi hoti.
जय हो !!
अपने सोलह आने सही बात कही है उस पर पुतुल जी की टिप्पणी सोने पे सुहागा है !!
कभी अगर आप और मै मिले तो फ़ाग गीत या जश गीत जरुर गायेंगे !!
Ferbadal kar bodhgamya banaye bahut achha kiya, lekin aisa kar ke genda fool ke Geetkar nahi ho gaye. Ramcharitmanas ka Hindi me arth likhne wala, ya use Hindi kavita me tabdeel kar dene wala Tulsidas kaise ho jayega? Mujhe afsos hai...
Bade bhaiya,
Kissanon Ki Atmhatya... ko lekar chhattisgrah ki chabi jo tathakathit Patrakar desh mey kharab kar rahe hain, unhe apne karara jawab diya hai.
Badhai...
Ummed hai, aap aisa hi prerit karne wala lekhan kartey rahengey.
Anil Dwivedi
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